Wife Property Rights : पति की संपत्ति में पत्नी का कितना हक? सुप्रीम कोर्ट ने सालों पुराना विवाद किया खत्म

Supreme Court Decisions (सुप्रीम कोर्ट का फैसला) : भारत में शादी सिर्फ एक सामाजिक बंधन नहीं है, बल्कि क़ानूनी रूप से भी पति-पत्नी के रिश्ते के कई अधिकार और जिम्मेदारियाँ तय होती हैं। लंबे समय से एक सवाल लोगों के मन में था – क्या पत्नी को पति की संपत्ति में कानूनी हक़ मिलता है? अब इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जो हर महिला के जीवन में बदलाव ला सकता है। आइए जानते हैं इस फैसले के मायने, नियम और असल जिंदगी से जुड़े उदाहरणों के साथ।

Supreme Court Decisions: क्या है असली मामला?

सालों से यह बहस चल रही थी कि अगर पति की मृत्यु हो जाए या वह पत्नी को छोड़ दे, तो पत्नी को उसकी संपत्ति में कितना हिस्सा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह साफ कर दिया है कि वैवाहिक जीवन में पत्नी को पति की संपत्ति पर ‘समान अधिकार’ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह हक केवल तलाक या मृत्यु के बाद नहीं, बल्कि शादीशुदा जीवन के दौरान भी लागू होता है।

मुख्य बिंदु:

  • शादी के बाद अर्जित संपत्ति में पत्नी का बराबर हक़
  • सिर्फ नाम पर न होने से हक खत्म नहीं होता
  • अगर पत्नी गृहिणी है, तब भी योगदान मान्य होगा

पत्नी का हक किस प्रकार की संपत्ति पर होता है?

अब यह जानना जरूरी है कि कौन-सी संपत्ति पर पत्नी का कानूनी अधिकार बनता है। कानून के अनुसार, संपत्ति दो प्रकार की होती है – स्व-अर्जित और पैतृक।

संपत्ति का प्रकार क्या पत्नी को हक है? टिप्पणी
पति की स्व-अर्जित संपत्ति हां, अगर वैवाहिक जीवन में अर्जित हुई बराबर हिस्सेदारी मानी जाती है
पति की पैतृक संपत्ति तलाक या मृत्यु के बाद हां बेटे के समान हिस्सा मिलता है
पति द्वारा पत्नी के नाम की गई संपत्ति पूर्ण हक पत्नी की मानी जाती है
ज्वाइंट अकाउंट/ज्वाइंट प्रॉपर्टी हां दोनों की साझेदारी में होती है
नाममात्र की घरवाली (हाउसवाइफ) हां घरेलू योगदान भी आर्थिक माना गया है

यदि पत्नी तलाक ले ले तो क्या हक रहता है?

यह एक आम सवाल है। तलाक के बाद भी महिला को पति की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है, लेकिन यह केस के आधार पर तय होता है। अगर तलाक से पहले संपत्ति अर्जित की गई है और महिला ने घर चलाने में योगदान दिया है – भले ही वो सिर्फ घरेलू कार्य हो – तब भी कोर्ट उसे बराबरी का हिस्सा दे सकता है।

महत्वपूर्ण बातें:

  • तलाक के बाद पत्नी गुज़ारा भत्ता (Maintenance) की हकदार होती है
  • संपत्ति बंटवारे के लिए कोर्ट की प्रक्रिया जरूरी होती है
  • बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी देखी जाती है

अगर पति की मृत्यु हो जाए तो क्या हक होता है?

पति की मृत्यु के बाद पत्नी को उसकी संपत्ति में हिस्सा मिलता है, भले ही वसीयत हो या न हो। अगर वसीयत नहीं है तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार पत्नी, बच्चे और माता-पिता को बराबर का हिस्सा मिलता है।

उदाहरण के तौर पर:
मान लीजिए, एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है और उसके पीछे पत्नी, एक बेटा और एक बेटी हैं। यदि उसकी कुल संपत्ति 60 लाख रुपये है, तो:

  • पत्नी को 20 लाख
  • बेटे को 20 लाख
  • बेटी को 20 लाख
    का हक़ मिलेगा।

असल जीवन की मिसालें

केस 1: उषा देवी, जो एक गृहिणी हैं और उनके पति ने बंगलौर में एक फ्लैट खरीदा था। उन्होंने न तो घर के लिए पैसे दिए और न ही दस्तावेज़ में उनका नाम है। पति की मृत्यु के बाद उनके देवर ने दावा किया कि संपत्ति उनका हक है। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि चूंकि उषा देवी ने सालों तक घर चलाया, बच्चों की देखभाल की और पति की आजीविका को संभालने में मदद की, इसलिए वह संपत्ति की बराबर हकदार हैं।

केस 2: सीमा नाम की महिला, जो बैंक में काम करती हैं और उनके पति ने उनके नाम से एक FD करवाई। तलाक के बाद पति ने दावा किया कि वह FD उनकी कमाई से है, इसलिए उस पर उनका हक है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर निवेश पत्नी के नाम पर किया गया है तो वह उसका हिस्सा है, चाहे पैसे पति ने दिए हों।

कानूनी सलाह क्या कहती है?

  • अगर आप महिला हैं और आपकी शादी को कुछ साल हो चुके हैं, तो आप पति की संपत्ति के हिस्से की हकदार हैं, खासकर अगर आप आर्थिक या घरेलू योगदान दे रही हैं।
  • अगर संपत्ति पर विवाद हो तो फैमिली कोर्ट का रुख करें।
  • किसी भी दस्तावेज पर बिना पढ़े साइन न करें, खासकर संपत्ति से जुड़े कागजात पर।
  • संपत्ति खरीदते समय ज्वाइंट नेम रखने से बाद में दिक्कतें नहीं आतीं।

महिलाओं को जानना ज़रूरी है अपना अधिकार

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मील का पत्थर है, खासकर उन महिलाओं के लिए जो घरेलू कामकाज में अपना पूरा जीवन लगाती हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि घर संभालना भी उतना ही मूल्यवान योगदान है जितना कि कमाई करना। इसलिए महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों की पूरी जानकारी होनी चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें कानूनी सहायता लेनी चाहिए।

यह लेख सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी कानूनी कदम से पहले विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।

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